अपण्णक जातक कथा: Buddha Jatak Katha in Hindi
इस लेख के माध्यम से हम भगवान बुद्ध के जीवन से जुडी हुई अतीत कल की रोचक जातक कथाओं (Jatak Katha) जिनका शीर्षक "जातक कथा" या Jatak Katha है, के बारे में विस्तार से उल्लेख करेंगे। भगवान बुद्ध के जीवन की लगभग ५५० कहानियों का संग्रह है, जो तिपिटक के दूसरे भाग के खुद्दकनिकाय में शामिल है। इसे पहली बार Roman character Danish scholar, Victor Fausboll द्वारा १८७७-१८९६ में लंदन के एक्सीलेंट क्रिटिकल एडिशन में प्रकाशित किया गया था। जातक कथा (ओं) की संख्या ५५० बहुत हद तक सटीक नहीं है, क्यों की संग्रह में कुछ कहानियां सिर्फ डुप्लीकेट है, कुछ अन्य में एक ही शीर्षक के तहत दो, तीन, या अधिक कहानियां शामिल हैं, और इसलिए ''लगभग ५५० " काफी करीब है। कहानियों की अपील व्यापक होने से और विशिष्ट ढांचे से बहुत दिलचस्प हैं। भगवान बुद्ध की जातक कथायें उनके द्वारा भिक्षुओं या उपासकों को उपदेश देते समय उदहारण के रूप में भिक्षुओं या उपासकों के भगवान से किये गए अनुरोध पर, तथागत द्वारा कथा के रूप में प्रकट की गई हैं, जो भगवान और उन भिक्षुओं या उपासकों के पूर्व जन्मों की घटनाओं पर आधारित हैं। इन कथाओं को बुद्ध ने उनको धम्म का उपदेश देने के लिए कहीं थी।
१. जातक कथा (Jatak Katha): अपण्णक जातक
वर्तमान (बुद्ध के समकालीन समय) में अनाथपिंडिक सेठ के ५०० अन्य मत या सिद्धांत के मित्र बौद्ध धम्म में परिवर्तित हुए, लेकिन बाद में अलग हो गए। बुद्ध ने उन्हें बुद्ध की शरण छोड़ फिर से अपने पूर्व के मत में चले जाने के लिए फटकार लगातें हैं, और अतीत में एक बुद्धिमान और एक मुर्ख व्यापारी की कहानी सुनाते हैं। उस मुर्ख ने कैसे अपनी मूर्खता के कारण यक्ष की बात मानी जिसने उसे भटकाया, और उसने अपने सारे आदमियों और माल को खो दिया; और वही बुद्धिमान व्यक्ति ने अपने कारवां को रेगिस्तान के पार सुरक्षित रूप से गंतव्य तक पहुंचाया।
सत्य के संबंध में यह प्रवचन तथागत बुद्ध द्वारा तब दिया गया था, जब वह श्रीवास्ती के निकट जेतवन महाविहार में विहर रहे थे। लेकिन आप पूछते हैं की इस कहानी को किसने उकसाया ?
एक दिन अनाथपिंडिक सेठ अपने ५०० अन्य सिद्धांत के मित्रों के साथ बहुत सा शहद, गुड़, कपडे, माला, इत्र का बड़ा भंडार लिए, जेतवन में जहाँ तथागत विहार कर रहे थे, वह गया, जाकर तथागत को उचित अभिवादन कर कुशल क्षेम पूछ, भगवान की माला, इत्र ,वस्त्र और औषधि व तेल आदि से पूजा की और भिक्षु संघ को सौंप दिया। और ऐसा करने पर उसने अपने बैठने के ६ दोषों का त्यागकर एक ओर स्थान ग्रहण किया। इसी तरह, अन्य पंथ के उसके मित्रो ने भी बुद्ध को अभिवादन किया और एक बैठ गए। भगवान का मुख पूर्णिमा के चाँद की तरह शानदार, उनकी उत्कृष्ट उपस्तिथि बुद्धत्व के संकेतों और चिन्हों से संपन्न थी और चारों ओर से घिरी हुई थी। उनकी कांति (प्रकाश) इस प्रकार निरूपण करती थी की जैसे की एक माला एक-एक फूल को सुशोभित करती है ऐसे ही अनेक मालाओं का भंडार हो।
तब तथागत बुद्ध ने उन्हें, लाल घाटी में एक तरुण सिंह की तरह सिंह-नाद करते हुए या बरसात के मौसम में गरजते बादलों के समान गड़गड़ाहट करते स्वर में, मानों स्वर्ग की गंगा को नीचे ला रहे हों और रत्नों की माला बुनते हुए प्रतीत हो रहे हो - फिर भी आठ बातों से युक्त हो रहे थे, जिसके आकर्षण ने कानों को मंत्रमुग्ध कर दिया, उन्होंने मधुरता से भरे और विविध सौंदर्यों के साथ उज्जवल प्रवचन में उन्हें धम्म का उपदेश दिया।
वे शास्ता के प्रवचन को सुनने के बाद, परिवर्तित हृदयों के साथ उठे, और दस बलधारी को अभिवादन के साथ, अन्य मतों या सिद्धांतों को छोड़ बुद्ध की शरण ग्रहण की। तब से वे बिना रुके अनाथपिंडिक के साथ, हाथों में इत्र और माला आदि लेकर विहार में धम्म सुनने के लिए जाते थे; और वे उदारता से परिपूर्ण थे, उपदेशों का पालन करते थे।
अब जब तथागत श्रीवस्ती से राजगृह वापस चले गए। बुद्ध के चले जाने पर, उन्होंने बुद्ध की शरण छोड़, फिर से अन्य मतों या सिद्धांतों की शरण का आश्रय मानकर अपनी पूर्व स्थिति में लौट आये। लगभग सात या आठ महीने के प्रवास के बाद जब तथागत जेतवन वापस लौट आये। एक बार फिर अनाथपिण्ड़क अपने उन मित्रों के साथ तथागत के पास आए, भगवान को अभिवादन किया और इत्र आदि अर्पित किया और एक ओर बैठ गए। और उसी प्रकार उनके मित्रों ने भी तथागत को अभिवादन किया और एक ओर बैठ गए। तब अनाथपिण्डिक ने बुद्ध को बताया की कैसे, जब तथागत चारिका करने निकले थे, तो उनके मित्रों ने फिर से बुद्ध की शरण छोड़ दी थी, और अपनी मूल स्थिति में वापस लौट गए थे।
तथागत ने अपने कमल के समान मुख को खोला, मनो वह रत्नों का एक ड़िब्बा हो, जो दिव्य सुगंधों से सुगंधित हो और असंख्य युगों में हमेशा सही बात करने के कारण विविध सुगंधो से भरा हो, जैसे ही बुद्ध ने पूछा -- उपासकों ! क्या यह सच है कि तुम लोग त्रिशरण छोड़ कर अन्य सिद्धांतों की शरण चले गए ?
और जब उन्होंने इस तथ्य को छिपाने में असमर्थ होकर यह कहते हुए स्वीकार लिया। भगवान! यह सच है। तब शास्ता ने कहा, "उपासकों, नीचे नरक की सीमाओं और ऊपर के उच्चतम स्वर्ग की सीमाओं के बीच में ही नहीं, सभी अनंत में नहीं जो संसार दाएं और बाएं फैला हुआ है, वहाँ उपदेशों का पालन करने और सदाचार से उत्पन्न होने वाले उत्क्रष्टाओं में कोई भी बुद्ध के बराबर नहीं, तो श्रेष्ट कहाँ से होगा ?
फिर तथागत ने उन्हें त्रिरत्नों (बुद्ध, धम्म, और संघ) की श्रेष्टता की घोषणा की, जैसे की वे पवित्र ग्रंथों में हुए हैं, भिक्षुओं! पैर वाले या बिना पैर वाले जितने भी प्राणी हैं, बुद्ध (तथागत) उनमें सर्वश्रेष्ट हैं। इस लोक में या दूसरे लोक में जितना भी धन है,..तथागत,... शुद्ध- चितों में श्रेष्ट हैं। इस तरह शास्ता ने; बुद्ध, धम्म, और संघ के गुणों को प्रकाशित किया। फिर तथागत ने आगे कहा , जो कोई उपासक या उपासिका, ऐसे अद्वितीय उत्कृष्टओं से संपन्न त्रि-रत्नों की शरण लेता है, वह नरक या उसके समान किसी अवस्था में नहीं जन्म लेता; बल्कि, सभी पुनर्जन्मों के कष्ट की स्थिति से मुक्त होकर देवताओं के लोक में चले जाते हैं, और वहाँ महान महिमा (आनंद) को प्राप्त करते हैं। इसलिए, तुम लोगों ने अन्य सिद्धांतो द्वारा प्रस्थापित हो, ऐसे आश्रय को त्याग कर, बहुत अनुचित किया है।
फिर यहाँ त्रिरत्नो की महिमा को प्रकाशित करने के लिए पवित्र सुत्तों का हवाला दिया, की जिसने भी मुक्ति और सर्वोच्च भलाई के लिए त्रिरत्नो की शरण ली है, उसे पीड़ा की अवस्था में पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ेगा:
"जो बुद्ध की शरण गये,
वे नरक में नहीं पड़ेंगे।
वे अपना मनुष्य शरीर छोड़कर,
सीधे देव-लोक में जायेंगे। "
"जो धम्म की शरण गये,
वे नरक में नहीं पड़ेंगे।
वे अपना मनुष्य शरीर छोड़कर,
सीधे देव-लोक में जायेंगे। "
"जो संघ की शरण गये,
वे नरक में नहीं पड़ेंगे।
वे अपना मनुष्य शरीर छोड़कर,
सीधे देव-लोक में जायेंगे। "
भयभीत होकर मनुष्य पर्वतों, वनों, वृक्षों, चेत्यों आदि स्थानों की शरण लेते हैं। लेकिन ये मंगल शरण नहीं, ये उत्तम शरण नहीं, क्योंकि इन शरणों से सब दुःखों से मुक्ति नहीं मिलती।
"जो कोई बुद्ध की, धम्म की, और संघ की शरण जाता है, जो कोई भी स्पष्ट समझ के साथ, चार आर्य सत्य के देखता है, दुःख, दुःख की उत्पति, दुःख से मुक्ति और दुःख से मुक्ति का आर्य अष्टांगिक मार्ग, इस निश्चित शरण को, इस परम शरण को, इस शरण का सहारा लेकर वह सभी कष्टों से मुक्ति पा लेता है। "
लेकिन शास्ता ने केवल इतना ही उन्हें धम्म का उपदेश नहीं किया, बल्कि यह कहा -- उपासको बुद्ध के विचार पर ध्यान (बुद्धानुस्मृति), धम्म के विचार पर ध्यान (धम्मनुस्मृति), संघ के विचार पर ध्यान (संघानुस्मृति), श्रोतापत्ति मार्ग, श्रोतापत्ति फल, सकृदागामी मार्ग, सकृदागामी फल, अनागामी मार्ग, अनागामी फल, अर्हन्त-मार्ग, तथा अर्हन्त फल दायक होता है। और जब शास्ता उन्हें धम्म उपदेश दे अंत में कहा, इस प्रकार की शरण छोड़कर तुम लोगों ने अनुचित किया है।
और यहाँ तथागत ने उन लोगो को कई मार्गों का उपहार देते हैं; यहाँ भिक्षुओं! "एक धर्म (बात) के अभ्यास (ध्यान) करने से, विकसित करने से, सम्पूर्ण निर्वेद (विराग), निरोध (नाश), उपशमन, अभिज्ञा, सम्बोधि (परमज्ञान) तथा निब्बान (निर्वाण) की प्राप्ति होती है। कौन सा एक धर्म ? बुद्ध के विचार पर ध्यान (बुद्धानुस्मृति)।"
जब तथागत ने उपासको को उपदेश दे व प्रोतसाहित कर कहा -- "इसी तरह अतीत में भी मनुष्यों ने तर्क-वितर्क से आयोग्य शरण को शरण समझ कर ग्रहण किया, और यक्षों वाले कान्तार (मरुस्थल) में जा यक्षों (भूतों) के शिकार होकर पूरी तरह नष्ट हुए; लेकिन उसी कान्तार में निर्दोष (अपण्णक) शरण को अनुकूलता के अपनाने वाले मनुष्य कल्याण को प्राप्त हुए। यह कह तथागत चुप हो गए।
तब अनाथपिण्डिक अपने आसन से उठकर, भगवान की वंदना तथा प्रशंसा कर, दोनों हाथों को जोड़, सिर पर रख कर इस प्रकार बोला -- "भंते ! इन उपासकों का इस समय उत्तम शरण त्यागकर वितर्क के पीछे जाना तो हमें ज्ञात है। लेकिन पूर्व में अमानुष (यक्षों) द्वारा सताए गए, कान्तार में उन लोगों का विनाश, और सत्य के प्रति समर्पित लोगों की समृद्धि, हमसे छिपी हुई है और जिसे केवल आप जानते हैं। भगवान ! अच्छा हो, यदि आप हमें इस बात को आकाश में उदय हुए पूर्ण चन्द्रम की तरह प्रकट करें। फिर भगवान ने, 'गृहपति' (अनाथपिण्डिक)! "दुनियाँ की कठिनाइयों को दूर करने के लिए ही असंख्य युगों तक दस पारमिताओं को पूरा करके मैंने बुद्धत्व (सर्वज्ञान) प्राप्त किया है। कान लगाओं और ध्यान से सुनो, मानों तुम शेर की मज्जा से सोने की एक नली भर रहे हो।
"इस प्रकार गृहपति का ध्यान आकर्षित करते हुए, तथागत ने पूर्व जन्म की छिपी हुई बात को मानो वह पूर्णिमा के चाँद को ऊपरी हवा से, जो बर्फ का जन्मस्थान है, से मुक्त कर रहे थे।"
बुध्द के अतीतकाल में (Jatak Katha):
पूर्वकाल में काशी देश के बनारस नगर में ब्रम्हदत्त नाम का राजा राज्य करता था। उन दिनों बोधिसत्व का जन्म एक व्यापारी परिवार में हुआ था, समय के साथ बड़े होकर, पूर्व से पश्चिम की ओर और पश्चिम से पूर्व की ओर व्यापर के लिए पाँच सौ बैलगाडीओं के साथ यात्रा करते थे। बनारस में एक और युवा व्यापारी भी था, जो मुर्ख था और उसके पास संसाधनों का अभाव था।
उस समय बोधिसत्व ने बनारस की बहुत सी मूल्यवान वस्तुओं से पाँच सौ गाड़ियां लाद दी और उनको सबको चलने के लिए तैयार कर दिया था। ऐसा ही उस मुर्ख युवा व्यापारी ने किया। बोधिसत्व ने सोचा, यदि यह मुर्ख युवा व्यापारी हर समय मेरे साथ रहे, और हजारों गाड़ियाँ एक साथ चलें, तो यह रास्ता काफी न होगा, आदमियों के लिये लकड़ी, पानी वगैरह लाना, या बैलों के लिए घास लाना कठिन मामला होगा। बोधिसत्व न सोचा या तो उसे पहले जाना चाहिए या मुझे। इसलिये बोधिसत्व ने दूसरे को बुलाया और उसके सामने अपना विचार रखते हुए कहा: "हम दोनों एक साथ यात्रा नहीं कर सकते; क्या आप पहले जाना पसंद करेंगे या आखिर में"? दूसरे ने सोचा, "अगर में पहले चलूँगा तो बहुत फायदा होगा।" मुझे ऐसी सड़क मिलेगी जो अभी तक टूटी नहीं है; मेरे बैलों के लिए खूब घास मिलेगी; मेरे आदमी करी के लिये जड़ी-बूटियाँ चुन लेंगे; पानी अबाधित रहेगा; और अंत में मैं अपने माल के विनिमय के लिए अपनी कीमत स्वयं तय करूँगा। तदनुसार उसने उत्तर दिया, "मेरे प्रिय महोदय ! मैं पहले जाऊंगा।"
बोधिसत्व ने अंत में जाने के कई फायदे देखे, उन्होंने खुद से इस प्रकार तर्क दिया, "जो यह आगे जा कर सड़क को समतल करेंगे जहाँ-जहाँ उबड़-खाबड़ है, जबकि मैं उस सड़क पर यात्रा करूँगा जिस पर वे पहले ही यात्रा कर चुके हैं; उनके बैल मोटी-मोटी पुरानी घास चर चुके होंगे, जबकि मेरे बैल उस मीठी नरम-नरम घास को चरेंगे जो उसके स्थान पर उग आएगी; मेरे आदमियों को करी और के लिए वहाँ मीठी जड़ी-बूटियाँ मिलेंगी जहाँ पुरानी जड़ी-बूटियां तोड़ ली गई हैं; जहाँ पानी नहीं हैं, पहले कारवां को खुद की आपूर्ति के लिए खुदाई करनी पड़ेगी, और हम उनके द्वारा खोदे गए कुओं से पानी पीयेंगे। कीमतों पर मोल भाव करना कठिन काम है; जबकि मैं, बाद में, अपने माल का विनिमय उन कीमतों पर करूँगा जो उन्होंने पहले ही तय कर दी हैं। "तदनुसार, इन सभी लाभों को देखकर, बोधिसत्व ने कहा, ठीक है सौम्य! तुम आगे जाओ।"
मुर्ख व्यापारी ने कहा, "बहुत अच्छा सौम्य!" और उसने अपनी गाड़ियां जोत ली, और यात्रा पर चल पड़ा। यात्रा करते हुए, उसने मानव बस्तियों को पीछे छोड़ दिया और जांगल के बाहरी इलाके में आ गया।
अब जंगल पांच प्रकार के होते हैं; डाँकुओं का जंगल, जंगली जानवरों का जंगल, सूखा जंगल, अमानुस जंगल, और अकाल जंगल। पहला, जब मार्ग लुटेरों से घिरा हो; दूसरा जब मार्ग सिंहों से घिरा हो; तीसरा जब मार्ग नहाने या पानी लेने का कोई अवसर न हो; चौथा तब होता है जब सड़क अमानुसओं से घिरी हो; और पाँचवा तब होता है जब कोई खाने लायक जड़ें या अन्य भोजन नहीं मिलता है। इस पांच प्रकार के जंगलों में से वह सूखा एवं अमानुस जंगल दोनों था।
इसलिए, इस युवा व्यापारी ने अपनी गाड़ियों पर बड़े-बड़े पानी से भरे मटके रखवा लिए, और साठ योजन के रेगिस्तान को पार करने के लिए निकल पड़ा। जब वह जंगल के बीच में पहुँचा, तब उसे देखकर यक्ष ने सोचा कि यदि मैं इन मनुष्यों का सारा जल फेंकवा दूँ और जब ये लोग मूर्छित हो जायेंगे, तब में इन सब को खा सकूँगा। यहा सोच उसने अपनी जादुई शक्ति से शुद्ध सफेद युवा बैलों द्वारा खींची जाने वाली एक रमणीय गाड़ी तैयार की। धनुष और तरकश, तलवारें तथा ढाल लिए हुए कुछ दस या बारह अमानुस अनुचरों, वह गाड़ी में एक शक्तिशाली स्वामी की तरह उनसे मिलने के लिए चला, उनके सिर के चारों ओर नीले कमल और वे सफेद जल कुमुद की माला पहने हुए, गीले बाल और भीगे हुए कपड़े और उनकी गाड़ी के पहिये कीचड़ से सने हुए थे। उसके आगे-पीछे सेवक भी अपने बालों और कपड़ों को गीला करके, सिर पर नीले कमल और सफेद कुमुदिनी की मालायें पहने हुए और हाथों में सफेद कमल के गुच्छे लेकर, कमल के डंठलों को चबा रहे थे, और उन लोगों से पानी और कीचड़ टपक रहा था।
कारवां के सरदारों की यही रीति है, कि जब हवा सामने की चलती थी, तो व्यापारी रथ में बैठे सेवकों के साथ धूली को हटाते हुए आगे चलता था; और जब पीछे की हवा चलती थी, तब उसी प्रकार पीछे-पीछे चलता था। चूँकि उस समय हवा सामने की थी। इसलिए युवा व्यापारी आगे था।
यक्ष ने जब व्यापारी को आता देख, अपनी गाड़ी को सड़क से एक तरफ कर लिया और उसका स्वागत करते हुए पूछा कि वह कहाँ जा रहा है। कारवां के नेता ने भी अपनी गाड़ी को रास्ते से एक ओर हटा दिया ताकि गाड़ियाँ गुजर सकें, जबकि वह रास्ते में ही रुका रहा और यक्ष को इस तरह सम्बोधित किया, "हम बनारस से आते हैं, महोदय ! लेकिन में देख रहा हूँ कि तुम्हारे सिरों पर और हाथों में कमल और कुमुद हैं, तुम्हारी प्रजा कमल के डंठल को चबा रही है, और तुम सब मैले हो और कीचड़ से सने हो और पानी तुम्हारे कपड़ों से टपक रहा है। क्या आप लोगों के आने के रास्ते में बारिस हो रही है, और क्या आप कमल और जल-कुमुदिनी से ढंके तालाबों से होकर आये हो ?
इस पर यक्ष ने कहा, तुमने क्या कहा ? क्यों, उधर जंगल की गहरी-हरी रेखा दिखाई देती है, उसके बाद पूरे जंगल में पानी के अलावा कुछ भी नहीं है। वहाँ सदैव बर्षा होती रहती है; और हर तरफ कमल और जल-कुमुदिनी से ढंकी झीलें हैं। फिर जैसे ही गाड़ियों की कतार पास से गुजरी, उनसे पूछा की वे कहाँ जा रहे हैं। "अमुक जगह पर," जबाव था। "और इस गाड़ी में और इस आखिरी गाड़ी में आपके पास क्या हो सकता है जो इस तरह चलती प्रतीत होती है जैसे कि यह भारी सामान से भरी हुयी हो ?" "ओह, इसमें पानी है।" "अपने दूसरी ओर से पानी अपने साथ ले जाकर अच्छा किया। लेकिन अभी इसकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आगे पानी प्रचुर मात्रा में है। इसलिए घड़ों को तोड़ डालो और पानी फेंक दो, ताकि तुम्हें यात्रा करने में आसानी हो।" और उन्होंने कहा, "अब अपने रास्ते पर चलते रहो, क्योंकि हम पहले ही बहुत देर तक रुक चुके हैं।" "फिर वह थोड़ा आगे चला गया, जब तक की वह दृष्टि ले ओझल नहीं हो गया, फिर वह यक्ष शहर में वापस चला गया जहाँ वह रहता था।
उस मुर्ख व्यापारी की मूर्खता ऐसी थी कि उसने यक्ष की बात मान ली, और पानी के घड़े तोड़ दिए और सारा पानी फ़ेंक दिया -- इतना भी पानी नहीं बचाया जितने से एक आदमी की हाथ की हथेली भी गीली हो सके। फिर उसने गाड़ियों को चलने का आदेश दिया। उन्हें पानी की एक बूंद भी नहीं मिली और प्यास ने उन लोगों को थका दिया।
दिन भर सूरज डूबने तक वे चलते रहे, परन्तु सूर्यास्त के समय उन्होंने अपनी गाड़ियों को खोल कर मूंगा (घेरा) बनाया, और बैलों को पहियों पर बाँधा। न बैलों के पास पिने के लिए पानी था, और न ही आदमियों के पास चावल पकाने के लियें, थके हुए लोग नींद के लिए जमीन पर जहाँ तहाँ गिर गए। लेकिन जैसे ही रात हुई, यक्ष अपने नगर से निकले, और उन सब मनुष्यों और बैलों को मार डाला; और जब उन्होंने उनका मांस खा लिया, और केवल हड्डियां छोड़ दी, तो यक्ष चले गए। इस प्रकार वह मुर्ख युवा व्यापारी उस पुरे समूह के विनाश का एक मात्र कारण था, जिनके कंकाल हर कल्पनीय दिशा में बिखरे हुए थे, जबकि पाँच सौ गाड़ियां अपने भार के साथ अछूती ही खड़ी रहीं।
अब बोधिसत्व ने मुर्ख युवा व्यापारी के प्रस्थान करने के लगभग छः सप्ताह बीतने के बाद, फिर वह अपनी पाँच सौ गाड़ियाँ लेकर नगर से आगे बढ़ा, और कुछ समय में जंगल के छोर पर पहुँच गया। जहाँ उसने अपने जल के लिए मटके भरवाये थे और पानी का प्रचुर भंडार रखा था, और ढोल बजाकर उसने अपने आदमियों को शिविर में इकट्ठा किया, और इस प्रकार उन्हें सम्बोधित किया, "मेरी अनुमति के बिना कोई भी चुल्लू भर पानी भी उपयोग न करें। इस जंगल में विष के वृक्ष हैं, इसलिये तुम में से कोई भी मुझ से पूछे बिना कोई पत्ता, फूल, या फल न खाये जो उसने पहले न खाया हो।" अपने आदमियों को यह उपदेश देकर वह अपनी ५०० गाड़ियाँ लेकर जंगल की ओर चल दिया।
जब वह जंगल के मध्य में पहुँच गए, तो यक्ष पूर्व की भांति बोधिसत्व के मार्ग में प्रकट हुआ। लेकिन, जैसे ही उसे यक्ष के बारे में पता चला, बोधिसत्व ने उसे देख लिया; क्योंकि उसने मन में सोचा, "यहाँ, इस 'जलविहीन जंगल' में पानी नहीं हैं।" अपनी लाल आँखों और आक्रामक रूप वाले इस व्यक्ति की कोई छाया तक दिखाई नहीं पड़ती। बहुत संभव है की उसने मुझसे पहले आने वाले मुर्ख युवा व्यापारी का सारा पानी फेंकने के लिए प्रेरित किया हो, और फिर जब तक कि वे दुर्बल न हो जाएं, इंतजार करते हुए व्यापारी को उसके सभी मण्डली सहित खा लिया हो। लेकिन यह मेरी चतुराई और बुद्धिमता को नहीं जानता।" फिर उसने यक्ष को चिल्लाकर कहा, "चलो! हम कारोबारी लोग हैं और हमें जो भी पानी मिलता है उसे हम फेंकते नहीं हैं, इससे पहले कि हम देख न लें कि और पानी कहाँ से आएगा। लेकिन, जब हम और अधिक देखते हैं, तो हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि हम इस पानी को फेंक दें और अपनी गाड़ियों को हल्का कर देंगे।
यक्ष कुछ आगे चलकर नजरों से ओझल हो गया, और अपने नगर को चला गया। जब यक्ष चला गया, तो बोधिसत्व के लोगों ने कहा, "महोदय, हमने उन लोगों से सुना है की उधर जंगल की गहरी रेखा दिखाई दे रही है, जहाँ उन्होंने कहा की हमेशा बारिश हो रही है। उनके सिर पर कमल और हांथो में जलकुमुद थे और वे कमल के डंठल खा रहे थे, और उनके कपड़े और बाल गीले थे और उनसे पानी बह रहा था। आइए हम अपना पानी फेंक दें और गाड़ियाँ हल्की कर लें, हल्की गाड़ियाँ थोड़ी तेजी से चलेंगी।" इन शब्दों को सुनकर, बोधिसत्व ने रुकने का आदेश दिया और लोगों को अपने पास इकट्ठा किया। "मुझे बताओं", उसने कहा, "क्या तुम में से किसी ने आज से पहले कभी सुना है कि इस जंगल में कोई झील या कुंड है ?" "नहीं महोदय", इसे जलविहीन जंगल क्यों जाना जाता है ?"
"हमें अभी कुछ लोगों ने बताया कि आगे, जंगल के क्षेत्र में बारिश हो रही है; अब बारिश की हवा कितनी दूर तक चलती है ?" "एक योजन (एक योजन = ३ मील ) महोदय।" और क्या यह बारिश की हवा यहाँ किसी एक आदमी तक पहुँची है ? " "नहीं महोदय" "तूफान-बादल का शिखर आप कितनी दूर से देख सकते हैं?" "एक योजन महोदय" और क्या यहाँ किसी एक आदमी ने एक भी तूफान का शीर्ष देखा है?" "नहीं महोदय" "आप कितनी दूर तक बिजली की चमक देख सकते हैं?" "चार या पाँच योजन तक महोदय।" और क्या किसी एक आदमी ने भी बिजली की चमक देखी है ?" "नहीं महोदय" "कोई आदमी कितनी दूर तक बदलों की गड़गड़ाहट सुन सकता है?" "दो या तीन योजन" और क्या यहाँ किसी आदमी ने गड़गड़ाहट सुनी है?" "नहीं महोदय" "वह आदमी नहीं बल्कि यक्ष था। हम उसके कहने पर अपना पानी फ़ेंक कर कमजोर होकर बेहोश हो जायेंगे तो वे हमें खा जाने की आशा से वापस लौट आएंगें। चूँकि वह युवा व्यापारी जो हमसे पहले आया था, वह साधनों में कुशल व्यक्ति नहीं था, सबसे अधिक संभावना है कि उसे अपना पानी फेंकने के लिए मुर्ख बनाया गया होगा और थकावट होने पर उसे खा लिया होगा। हम उम्मीद कर सकते हैं कि उसकी पाँच सौ गाड़ियाँ वैसे ही खड़ी होंगी जैसे वे शुरुआत के समय भरी हुई थी; हम आज उन्हें देखेंगे। चुल्लू भर पानी भी बिना फेंके, हर संभव गति से चलो।
इन शब्दों के साथ अपने लोगों को आगे बढ़ाने का आग्रह करते हुए, वह अपने रास्ते पर आगे बढ़े जब तक की उनकी नजर उन ५०० गाड़ियों पर नहीं पड़ी, जैसे वे लदी हुई थीं और हर दिशा में पुरुषों और बैलों के कंकाल बिखरे पड़े थे। उसने अपनी गाड़ियों को खोलकर एक घेरे में खड़ा किया, ताकि एक मजबूत घेरा बन जाये; उसने देख, की उसके पुरुषों और बैलों ने शाम का भोजन कर लिया है, और बैलों को बीच में पुरुषों को उनके चारों ओर लिटा दिया गया; और वह अपने दल के मुख्य पुरुषों के साथ हाथ में तलवार लिए पहरा देता रहा, और रात के तीनों पहरों तक दिन निकलने की बाट चाहता रहा। भोर में जब वह अपने बैलों को चारा खिला चुका था और सभी जरुरी काम कर चुके थे, उसने मजबूत गाड़ियां को ले अपनी कमजोर गाड़ियों को छोड़कर, और मंहगा सामान ले कम मूल्य का सामान छोड़कर वह अपने गंतव्य की ओर चला गया, जहाँ उसने अपने सामान को उनके मूल्य से दोगुने या तीनगुने मूल्य पर बेचा और अपनी पूरी मण्डली में से एक भी आदमी को खोये बिना अपने शहर वापस लौट आया।
जातक कथा के अंत में, शास्ता ने कहा -- गृहपति! "इस प्रकार अतीत कल में वितर्क के पीछे चलने वाले विनाश को प्राप्त हुए, लेकिन बुद्धिमान (यथार्थ-ग्राही) लोग यक्षों के हाथों से बचकर, सुरक्षित रूप से अपने लक्ष्य तक पहुँचे और वापस लौट आये। और जब उन्होंने इस प्रकार दोनों कथाओं को एक साथ जोड़कर, सम्बुद्ध हो जाने पर इस यथार्थ (अपण्णक) धम्म-उपदेश के सम्बन्ध में यह गाथा कही --
अपण्णकं ठानमेके, दुतियं आहु तक्किका।
यतदञ्जाय मेधावी तं गण्हे यदपंणकं।।
कुछ लोग यथार्थ बात करते हैं; जबकि मुर्ख लोग अयथार्थ बात करते हैं,
बुद्धिमान को समझकर जो यथार्थ है उस बात को ग्रहण करना चाहिए।
अपण्णक जातक कथा (Jatak Katha) का सारांश:
इस प्रकार शास्ता ने धम्म का उपदेश करते हुए यह शिक्षा का पाठ पढ़ाया। और उन्होंने आगे कहा, "जिसे सत्य के साथ चलना कहा जाता है। इस प्रकार बुद्ध ने उपासको को तीन सम्पतियाँ, छः कामावचर स्वर्ग और ब्रह्म-लोक सम्पत्तियाँ दे कर अंत में अर्हत-मार्ग को देने वाली अपण्णक प्रतिपदा, तथा चार दुर्गतियों और पाँच निचले-कुलों में जन्म देने वाली सपण्णक प्रतिपदा इस प्रकार यथार्थ धम्म का उपदेश कर, चारों सत्यों के अंत में, वह सब पाँच सौ उपासक श्रोतापन्न हो गए।
तथागत ने इस धम्म-उपदेश को देकर, और दो कथाऐं कह, तुलना कर, जातक कथा का सारांश निकल दिया। उस समय का मुर्ख युवा व्यापारी देवदत्त था। उसकी मण्डली देवदत्त की मण्डली थी। इस समय की बुद्ध की मण्डली, बुद्धिमान व्यापारी की मण्डली थी। और बुद्धिमान व्यापारी तो में ही था।
जातक कथा समाप्त!
जातक किसका ग्रंथ है?
जातक कथाएं त्रिपिटक के खुद्दक निकाय का अंग है।
जातकों की कुल संख्या कितनी है?
जातकों की कुल संख्या ५४७ या ५५० के लगभग है।
जातक कथा कौन से भाषा में लिखी गई हैं ?
जातक कथाएं भगवान बुद्ध के द्वारा पाली भाषा में ही कहीं गयीं थी, और उनके बाद भिक्षुओं ने त्रिपिटक में पहली बार पाली में ही लिखा था। १८७७-१८९६ में पहली बार पाली से इंग्लिश में अनुवाद हुआ। जो लंदन के एक्सीलेंट क्रिटिकल एडिशन में प्रकाशित किया गया था।
अपण्णक जातक कथा का स्रोत:
- Chalmers, R. (1895). The Jataka or Stories of the
Buddha's Former Births (Vol. I). (P. E. Cowell, Ed.)
- DAVIDS, T. W. (1880). Buddhist Birth Stories or
Jataka Tales (Vol. I). (V. FAUSBOLL, Ed., & T. W. DAVIDS, Trans.)
London: TRUBNER & CO., LUDGATE HILL.
- Kaushaliyan, V. A. (2013). Jatak. Prayag: Hindi
sahitya Sammelan.
- T.W. Rhy Davids, a. o. (2023). The Birth Stories
(Jataka-attakatha).
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