2. वण्णुपथ जातक कथा: Jatak katha in Hindi

वण्णुपथ जातक कथा: Jatak katha in Hindi

इस लेख के माध्यम से हम भगवान बुद्ध के जीवन से जुडी हुई अतीत कल की रोचक जातक कथाओं (Jatak Katha) जिनका शीर्षक "जातक कथा" है, के बारे में विस्तार से उल्लेख करेंगे। भगवान बुद्ध के जीवन की लगभग ५५० कहानियों का  संग्रह है, जो तिपिटक के दूसरे भाग के खुद्दकनिकाय में शामिल है। इसे पहली बार Roman character Danish scholar, Victor  Fausboll द्वारा १८७७-१८९६ में लंदन के एक्सीलेंट क्रिटिकल एडिशन में प्रकाशित किया गया था।  जातक कथा (ओं)  की संख्या ५५० बहुत हद तक सटीक नहीं है, क्यों की संग्रह में कुछ कहानियां सिर्फ डुप्लीकेट है, कुछ अन्य में एक ही शीर्षक के तहत दो, तीन, या अधिक कहानियां शामिल हैं, और इसलिए ''लगभग ५५० " काफी करीब है। कहानियों की अपील व्यापक होने से और विशिष्ट ढांचे से बहुत दिलचस्प हैं। भगवान बुद्ध की जातक कथायें उनके द्वारा भिक्षुओं या उपासकों को उपदेश देते समय उदहारण के रूप में भिक्षुओं या उपासकों के भगवान से किये गए अनुरोध पर, तथागत द्वारा कथा के रूप में प्रकट की गई हैं, जो भगवान और उन भिक्षुओं या  उपासकों के पूर्व जन्मों की घटनाओं पर आधारित हैं। इन कथाओं को बुद्ध ने उनको धम्म का उपदेश देने के लिए कहीं थी। 

 वण्णुपथ जातक कथा:

वन्नुपथ जातक कथा

वर्तमान (बुद्ध के समकालीन समय) में एक भिक्षु अपनी मुक्ति की खोज से आसानी से हार मान लेता है, जिसे अन्य भिक्षु द्वारा बुद्ध के पास लाया जाता है।  बुद्ध ने बताया की पिछले जन्म में इसने अपनी दृढ़ता से एक कारवां बचाया था, और फिर उन्होंने एक कारवां की कथा सुनाई जो रात के दौरान खो गये थे,  और जब एक युवा लड़के ने अपने गुरु के आदेशों का पालन किया, उसने सब की जान बचा ली और पीने का पानी भी खोज निकाला। 

"अपने अथक परिश्रम से उन्होंने गहरी खुदाई की।" यह धम्म कथा भगवान ने श्रीवस्ती में विहार करते समय कही।  
आप पूछते हैं किसके बारे में कही ? एक ऐसे भिक्षु के बारे में जिसने हिम्मत हार कर योगाभ्यास छोड़ दिया था। 
जब तथागत बुद्ध श्रीवास्ती में विहार कर रहे थे, तब श्रीवास्ती परिवार का एक वंशज जेतवन आया, जिसने शास्ता से धम्म उपदेश सुना और महसूस किया कि वासनाएँ दुःख पैदा करती हैं, भिक्षु हो, भिक्षु-दीक्षा (उपसम्पदा) ग्रहण की। पाँच वर्ष बीत जाने पर उस भिक्षु ने दो मात्रिकायें (भिक्षु-प्रातिमोक्ष) और विदर्शना (समाधि) को सीख लिया और खुद को आध्यात्मिक तरीकों में प्रशिक्षित कर लिया, तो उसने शास्ता से अपने चित्त के अनुकूल योगक्रिया (कर्मस्थान) या ध्यान के लिए विषय प्राप्त किया। फिर जंगल में जाकर, वर्षावास के ३ महा तक खूब अभ्यास के बावजूद वह कोई सफलता प्राप्त न कर सका।  तो उसको मन में विचार आया, "शास्ता ने कहा था कि चार प्रकार के पुग्गल (पुरुष या लोग) होते हैं, और मैं उनमें शायद चौथे प्रकार का या निचले वर्ग का हूँ; इस जन्म में, मुझे लगता है, मेरे लिए न तो कोई मार्ग है और न कोई फल। मैं इस जंगल में रह कर क्या करूँगा ? मैं वापस शास्ता के पास लौट जाँऊगा,  बुद्ध के गौरवशाली व्यक्तित्व को देखते एवं उनके मधुर धम्मोपदेशों को सुनते हुए अपना जीवन व्यतीत करूँगा।" वह जेतवन वापस आ गया। 

जब उसके दोस्तों और परिचितों ने उससे पूछा, "आयुष्मान! तुमने योगाभ्यास (श्रमणधर्म) करने के लिए शास्ता से योगविधि या ध्यान के लिए एक विषय प्राप्त किया और एक साधु का एकांत जीवन जीने के लिए प्रस्थान किया था। लेकिन अब तुम लौट आये हो, और सामाजिक सुखों का आनंद ले रहे हो। क्या तुम्हारे साधु होने का उद्देश्य पूरा हो गया ? क्या तुम जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो गए ?

"आयुष्मनों ! मैंने मार्ग या फल नहीं प्राप्त किया। मैंने महसूस किया कि मैं इस योग्य नहीं हूँ, इसलिए मैंने प्रयास करना छोड़ दिया और वापस लौट आया।" 

"तुमने गलत किया, आयुष्मान ! दृंढ पराक्रमी उपदेशक के धम्म में प्रब्रजित हो, प्रयास करना छोड़ दिया।  आ तुझे तथागत के पास ले चलें।" और वे उसे शास्ता के पास ले गए। 

जब शास्ता को उनके आने का पता चला, तो उन्होंने कहा -- "भिक्षुओं ! तुम इस अनिच्छुक भिक्षु को लेकर क्यों आये हो ? क्या किया हैं इसने " ?

"भंते ! यह भिक्षु ऐसे सत्य के धम्म में प्रब्रजित होने के बाद, योगाभ्यास का प्रयास करते करते उसे छोड़कर, वापस लौट आया है। "
 
तब शास्ता ने उससे पूछा, "भिक्षु! क्या यह सच है, जैसा कि ये कहते हैं, कि तुमने प्रयास करना छोड़ दिया "? "यह सच है, तथागत! उसने उत्तर दिया।" "लेकिन ऐसा कैसे भिक्षु ! कि तुमने ऐसे शासन में अपने आप को समर्पित करने बाद, अल्पेच्छ, संतुष्ट, एकांतवासी, एवं प्रयत्नवान न बन, क्यों अपने को आलसी भिक्षु बन रहा है ? क्या तुमने अपने अतीत में कठोर परिश्रम नहीं किया था  ? क्या तेरे अकेले के  कठोर परिश्रम से रेतीले रेगिस्तान में पाँच सौ गाड़ियों के बैलों और उनके आदमियों ने पानी पाकर प्रसन्न नहीं हुए? अब ऐसा कैसे कि तुम हार मान रहे हो ?" ये शब्द उस भिक्षु के संकल्प को पुनः स्थापित करने के लिए पर्याप्त थे। 

उस बात को सुनकर भिक्षुओं ने भगवान से पूछा, "भंते ! इस भिक्षु की वर्तमान में हार मान लेना तो हमें स्पष्ट है; लेकिन अतीत में इस अकेले के प्रयास से रेतीले रेगिस्तान में पुरषों और बैलों का पानी पाकर सुखी होना।  यह केवल आप ही जानते हैं जो सर्वज्ञ हैं; आपसे प्रार्थना करते हैं कि हमें उस कथा के बारे में बताएँ। " "तो भिक्षुओं सुनो!" तथागत ने कह कर उन भिक्षुओं का ध्यान आकर्षित किया और पूर्व जन्म की अज्ञात बात को प्रकाशित किया। 

बुद्ध के अतीत कल में: वण्णुपथ जातक कथा

एक समय की बात है जब काशी के बनारस में राजा ब्रह्मदत्त के राज्य में, बोधिसत्त्व ने एक व्यापारी परिवार में जन्म लिया था।  जब वह बड़ा हुआ तो वह पाँच सौ गाडिओं के साथ व्यापर करने के लिए घूमता था।  एक अवसर पर वह साठ योजन पार एक रेतीले जंगल में आया, जिसकी रेत इतनी महीन थी कि, पकड़ने पर बंद मुट्ठी से फिसल जाती थी। और जैसे ही सूरज उगता था, वह कोयले  के बिस्तर की भांति गर्म हो जाती थी फिर कोई भी उस पर चल नहीं सकता था। इसलिए, उसे पार करने  वाले लोग अपनी गाड़ियों में जलाऊ लकड़ियाँ, पानी, तेल, चावल आदि ले जाते थे और केवल रात में यात्रा करते थे। भोर में  वे अपनी गाड़ियों को एक घेरे में खड़ा करके एक लागर  (शिविर या पड़ाव) बनाते थे, जिसके ऊपर एक शामियाना (तिरपाल) फैला होता था, और जल्दी भोजन करने के बाद वे पूरे दिन छाया में बैठे रहते थे। जब सूरज डूब जाता, तो वे शाम का भोजन समाप्त कर, जैसे ही भूमि ठंडी हो जाती थी, वे अपनी गाड़ियां जोत  लेते थे और आगे बढ़ जाते थे। इस रेगिस्तान में यात्रा करना समुद्र में यात्रा करने के जैसा था; क्योंकि इसमें एक दिशा प्रदर्शक (रेगिस्तान का पायलेट) की जरूरत होती है; उसे तारों को देख कर काफिले को रेगिस्तान पार भेजना होता है।  वह व्यापारी भी, उस समय इसी रास्ते रेगिस्तान की यात्रा कर रहा था। 

जब उसने (रेगिस्तान का पायलेट) उन्सठ योजन पार कर लिए तो उसने सोचा, "अब बस एक रात और हम रेगिस्तान के पार हो जायेंगे," अतः जब वे भोजन कर चुके, तब उसने लकड़ियाँ और पानी फेंकने का आदेश दिया, और अपनी गाड़ियाँ जोतकर सड़क पर चल दिया। सामने की गाड़ी में एक गद्दे पर बैठा पायलेट आकाश में तारों  की ओर देख रहा था और उसके अनुसार दिशा निर्देशित कर रहा था।  लेकिन इतने समय तक उसे नींद नहीं आई, इसलिये वह थक गया और सो गया, जिसके परिणामस्वरूप उसे पता नहीं चल कि बैल घूम गए हैं और जिस रास्ते वह आये थे उसी रास्ते पर चलते रहे। पूरी रात बैल अपने रास्ते पर चलते रहे, लेकिन सुबह होने पर पायलेट जाग गया, और ऊपर तारों की स्थिति को देखते हुए चिल्लाया, "गाड़ियों को घुमाओ!"  "गाड़ियों को घुमाओ!" और जैसे ही उन्होंने गाड़ियाँ घुमाई और उन्हें कतार में खड़ा किया, दिन ढल गया। "यही वह जगह है जहाँ हमने कल डेरा डाला था, कारवां के लोग चिल्लाए। "हमारी सारी लकड़ी और पानी ख़त्म हो गया है, और हम खो गए हैं।" इतना कह कर उन्होंने अपनी गाड़ियाँ खोल दी और एक लंगर बनाया और ऊपर शामियाना बिछा दिया; फिर प्रत्येक व्यक्ति निराशा में अपनी अपनी गाड़ी के नीचे गिर गया। बोधिसत्व ने मन में सोचा, "अगर में भी हार मान लूँगा, तो हर एक व्यक्ति नष्ट हो जाएगा।  वह इधर-उधर भटकता रहा, अभी भी प्रातः कल और ठंडा समय था, इसलिए वह घूमता रहा जब तक की वह एक कुसा-घास पर नहीं आ गया। 

"यह घास ", उसने सोचा, "केवल नीचे पानी की उपस्तिथि के कारण ही यहाँ उग सकती है।" इसलिए उसने एक कुदाल लाने और उस स्थान पर एक गड्ढा खोदने का आदेश दिया।  उन्होंने साठ हाथ नीचे तक खुदाई की, इतनी गहराई तक खोदने पर उनकी कुदाल एक चट्टान से टकराई और हर कोई स्तब्ध रह गया। लेकिन बोधिसत्व को यह महसूस हुआ कि उस चट्टान के नीचे पानी होगा, वह गड्डे में उतरा और चट्टान पर अपना कान लगाया और सुनने लगा। नीचे बहते पानी की आवाज सुनकर, वह बाहर आया और एक सेवक से कहा, "मेरे बेटे, अगर तुम हार मानोगे, तो हम सब नष्ट हो जायेंगे। इसलिए हिम्मत रखो और इस हथौडे को ले गड्डे में उतर कर चट्टान पर प्रहार करो।" 

अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए, वह दृढ़ संकल्पित होकर, जहाँ अन्य सभी निराश हो गए थे, नीचे गया और चट्टान पर प्रहार किया।  जिस चट्टान ने जलधारा को अवरुद्ध कर दिया था, वह टूटकर उसमें गिर गई। गड्डे में पानी इतना बढ़ गया कि वह ताड़ के पेड़ जितना ऊँचा हो गया; सभी ने पानी पीया और स्नान किया। फिर उन्होंने अपनी अतिरिक्त धुरियां और याक अलग कर दिए, अपना चावल पकाया और खाया, अपने बैलों को भी खिलाया। और जैसे ही सूरज डूबा, उन्होंने कुएं के किनारे एक झंडा पहराया और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े।  वहाँ उन्होंने अपने माल को उसके मूल्य से दोगुने और चार गुने दाम पर बेचा। आय के साथ वे अपने घर लौट आए, जहाँ वे लोग अपनी आयु भर जी कर, कर्मानुसार चुत्य (गति) हुए। बोधिसत्व भी दान आदि पुण्य-कर्म कर परलोक सिधारे। 

बुद्धत्व प्राप्त कर लेने पर यह गाथा कही --

प्रयत्नशील लोगों ने रेतीले मार्ग को खोद कर पानी पाया। 
इसी प्रकार वीर्य्य-बल से युक्त मुनि प्रयत्नशील हो ह्रदय की शांति को प्राप्त करे। 

वण्णुपथ जातक कथा का सारांश:

इस धम्मोपदेश के बाद भगवान ने चारों आर्य(अरिय) सत्यों की व्याख्या की। सत्यों की व्याख्या के समाप्त होने पर हिम्मत हारा हुआ भिक्षु अर्हन्त उत्तम फल में प्रतिष्ठित हुआ। 

इन दोनों कथाओं को सुनाने के बाद, शास्ता ने दोनों कथाओं को एक साथ जोड़कर सम्बन्ध स्थापित किया, और यह बताया की "आज का हिम्मत हारा हुआ यह भिक्षु उस समय का वह सेवा करने वाला लड़का था, जिसने दृढ़ता से चट्टान को तोडा था, जिसके कारण सभी लोगों को पानी मिला; बुद्ध के अनुयायी कारवां के बाकी के लोग थे; और वह प्रधान व्यापारी तो मैं स्वयं ही था।"  


कथा समाप्त 


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