Narsingh Gatha: नरसीहगाथा / नरसिंह गाथा (पालि-हिंदी)
Narsingh Gatha: नरसीहगाथा / नरसिंह गाथा (पालि-हिंदी)
सुकीति गोतम ने बुधत्व प्राप्ति के बाद अपने पिता राजा शुद्धोधन के आग्रह पर तथागत बुद्ध कपिलवस्तु पधारे थे ।
उस समय राहुल-माता ने राहुल को इन्हीं शब्दों में तथागत बुध का गुणात्मक परिचय दिया था।
चक्कवरंकितरत्त-सुपादो लक्खणमण्डित आयतपण्ही ।
चामरछत्तविभूसित पादो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥1॥
(1) जिनके चरण रक्त-वर्ण चक्र से अलंकृत हैं, जिनकी एड़ी सुन्दर है, जिनके चरण चंवर तथा छत्र से सुशोभित हैं, वे जो नरों में सिह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
सक्यकुमारवरो सुखुमालो लक्खणचित्तित पुण्णसरीरो ।
लोकहिताय गतो नरवीरो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥2॥
(2) ये जो सुकुमार शाक्य कुमार है, ये जो सुन्दर चिह्नों से युक्त संपूर्ण शरीर से संपन्न हैं, जिन्होंने लोकहित के लिए गृहत्याग किया है, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
पुण्णससंकनिभो मुखवण्णो देवनरान पियो नरनागो ।
मत्तगजिन्द विलासितगामी एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥3॥
(3) जिनका मुख पूर्ण चन्द्र के समान प्रकाशित है, ये जो नरों में हाथी के समान हैं तथा देवताओं और नरों सभी के प्रिय हैं, ये जो मद-मस्त गजराज की तरह चले जा रहे हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
खत्तियसम्भवअग्गकुलीनो देवमनुस्स नमस्सित पादो ।
सीलसमाधि पतिट्ठितचित्तो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥4॥
(4) ये जो अग्र क्षत्रिय कुलोत्पन्न हैं, ये जिनके चरणों की देव-मनुष्य सभी वन्दना करते हैं, ये जिनका चित्त शील-समाधि में सुप्रतिष्ठित है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
आयतयुत्त सुसण्ठित नासो गोपमुखो अभिनीलसुनेत्तो ।
इन्दधनू अभिनीलभमूको एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥5॥
(5) ये जिनकी नासिका चौड़ी तथा सुड़ौल है, जो नरों में वृषभ के समान हैं, ये जिनके नेत्र सुनील वर्ण हैं, ये जिनकी भौएं इन्द्रधनुष के समान हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
वट्ठसुमट्ठ सुसण्ठितगीवो सीहहनू मिगराजसरीरो ।
कञ्चनसुच्छवि उत्तमवण्णो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥6॥
(6) ये जिनकी ग्रीवा गोलाकार है, ये जिनकी ठोढ़ी मृगराज के समान है, ये जिनका वर्ण स्वर्ण के समान आकर्षक है, ये जो नरों में सिंह हैं,ये ही तेरे पिता हैं।
सिनिद्ध सुगम्भिरमञ्जुसुघोसो हिंगुलवण्ण सुरत्तसुजिन्हो ।
वीसति वीसति सेतसुदन्तो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥7॥
(7) ये जिनकी वाणी स्निग्ध हैं, गंभीर हैं, सुन्दर है, ये जिनकी जिह्वा सिंदूर के समान रक्तवर्ण है, ये जिनके मुंह में श्वेत वर्ण के बीस-बीस दांत हैं, ये जो नरों में सिंह है, ये ही तेरे पिता हैं।
अञ्जनवण्णसुनीलसुकेसो कञ्चनपट्टविसुद्धललाटी
ओसधिपण्डर सुद्धसुवण्णो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥8॥
(8) ये जिनके केस सुरमे के समान सुनील वर्ण हैं, ये जिनका ललाट कञ्चन के समान दीप्त है, ये जिनका शरीर औषधि-तारे के समान शुभ्रवर्ण है, ये जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
गच्छति नीलपथे विय चन्दो तारागण परिवेटितरुपो ।
सावक मज्झगतो समणिन्दो एस हि तुय्ह पिता नरसीहो ॥9॥
(9) ये जो तारागण से घिरे चंद्रमा के समान बढ़े चले जा रहे हैं; ये जो (भिक्खुओं से) उसी प्रकार घिरे हुए हैं जैसे चन्द्रमा तारों से, ये जो अपने श्रावकों से घिरे श्रमण हैं, वे जो नरों में सिंह हैं, ये ही तेरे पिता हैं।
सन्दर्भ:
१. तथागत बुद्ध का प्राथमिक नाम सुकीति था। सिद्धार्थ नाम बाद में जोड़ा गया। ऐसा हाल ही में पिपरवाह की खुदाई में मिले कलश से पता चला है।
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