पाली (पालि) भासा का इतिहास / History of a Pali Language
"नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्सा"
पाली (पालि) भासा का इतिहास
History of a Pali Language
---------------------------------------------------------------
वस्तुतः पालि और प्राकृत भासा को परिष्कृत करके, संस्कारित करके जिस नई भासा को जन्म दिया गया, उसका ही नाम 'संस्कृत' हुआ। यह काम पांचवी-छट्ठी शताब्दी के आसपास नालंदा विश्वविद्यालय में शुरू हुआ, जिसमें प्रधान भूमिका थी आचार्य पाणिनि की। उन्होंने ही इस संस्कारित भाषा की व्याकरण बनाई- अष्टाध्यायी- आठ अध्यायों का व्याकरण ग्रंथ।
पाली (पालि) भासा |
व्याकरणबद्ध होने के बाद संस्कृत को भासा का रूप लेने में लगभग चार शताब्दियों का समय लगा। भाषा इतिहास के जानकार जानते हैं कि व्याकरणबद्ध होने के बाद ही कोई बोली भाषा का रूप लेती है। इससे पहले वह बोली होती है। भासा का रूप लेने के बाद ईसापूर्व प्रथम शताब्दी के आसपास संस्कृत में लालित्यपूर्ण ग्रंथों की रचना शुरू हुई। संस्कृत काव्य का सुप्रसिद्ध अनुष्टुप् छंद आचार्य पाणिनि की देन है, जिसकी महत्तम अभिव्यक्ति महाकाव्य काल में दिखाई देती है। महाकाव्यों की रचना अधिकांशतः इसी छंद में हुई है।
पालि और प्राकृत को संस्कारित, परिष्कृत किया गया, जैसे धम्म को धर्म, कम्म को कर्म, सब्ब को सर्व किया गया।
ध्यान देने की मुख्य बात यह है कि पालि में अर्धाक्षर वाला रफार या अक्षरों के ऊपर वाला रफार नहीं होता। यथा, क्रम में हलंत क् के साथ नीचे लगा र या कर्म में म के ऊपर अर्धाक्षर के रूप में लगा र। इसलिए पालि के अर्धाक्षर व पूर्णाक्षर के सम्मिलित रूप को रफार से प्रतिस्थापित किया गया- धम्म को धर्म, कम्म को कर्म, सब्ब को सर्व किया गया।
पालि से व्युत्पन्न संस्कृत शब्दों की एक उदाहरणार्थ सूची दृष्टव्य है:
पालि संस्कृत
धम्म धर्म
कम्म कर्म
मग्ग मार्ग
सब्ब सर्व
मोक्ख मोक्ष
दिट्ठी दृष्टि
समन श्रमण
सच्च सत्य
अरिय आर्य
विपस्सना विपश्यना
ज्झान ध्यान
दीघ दीर्घ
मज्झिम मध्यम
मनुस्स मनुष्य
सुभासित सुभाषित
सिक्खा शिक्षा
पुत्त पुत्र
मञ्ज मद्य
संतुट्ठी संतुष्टि
सवण श्रवण
दस्सन दर्शन
निब्बान निर्वाण
पालि के बहुत-से शब्दों को ज्यों का त्यों बिना फेरबदल के भी संस्कृत में आत्मसात् किया गया जैसे सम्यक्, भगवंत, भगवान् आदि।
संस्कृत भासा को जन्म देने और उसमें रचना करने की पहल महायानी बौद्ध आचार्यों ने की। उन्होंने ही बुद्ध के सूत्रों की रचना भी संस्कृत भाषा में की। सिर्फ शब्दों को ही नहीं बल्कि पालि भासा के बहुत-से शब्दों के अर्थों में भी परिवर्तन किया गया।
इस भूमिका की पृष्ठभूमि में कहें तो कि पालि भासा में 'भगवान' शब्द का अर्थ उन अर्थों से सर्वथा भिन्न है जिन अर्थों में यह शब्द आजकल लिया जाता है। पालि का ‘भगवान' अथवा 'भगवंत' दो शब्दों से बना है - भग+वान्। पालि में भग मायने होता है- भंग करना, तोड़ना, भाग करना, विभाजन, विश्लेषण करना, उपलब्धि को बाँटना आदि और वान् अर्थात् धारणकर्ता, तृष्णा आदि। यानी जिसने अपनी तृष्णाओं को भंग कर दिया वह भगवान् है।
पालि ग्रंथों में बुद्ध के लिए प्रयुक्त भगवान् अथवा भगवा शब्द को परिभाषित करते हुए बहुत-से उदाहरण हैं:
'भग्गरागोति भगवा'
- (जिसने) राग भग्न कर लिया (वह) भगवान्।
'भग्गदोसोति भगवा'
- (जिसने) द्वेष भग्न कर लिया (वह) भगवान्।
'भग्गमोहोति भगवा, भग्गमानोति भगवा, भग्ग किलेसोति भगवा, भवानं अंतकरोति भगवा, भरगकण्डकोति भगवा... '
- (जिसने ) मोह भंग कर लिया, अभिमान नष्ट कर लिया, क्लेष भग्न कर लिए, भव संस्कारों का अंत कर लिया, कंटक भग्न कर लिए (वह) भगवान्।
इस प्रकार के बहुत-से उदाहरण मिलते हैं, जिनमें भगवान् शब्द को सुपरिभाषित किया गया है।
'भावितकायो भावितसीलो भावितचित्तो भावितपजोति भगवा' अर्थात् काया, शील, चित्त और प्रज्ञा को जिसने साध लिया, भावित कर लिया (वह) भगवान्।
भगवान् शब्द गौरव व गरिमा का भी पर्याय है- भगवाति गारवाधिवचनं।
भाग्यवान्, सौभाग्यवान् शब्द भी भगवान् शब्द से व्युत्पन्न हैं। अपनी उपलब्धि में लोगों को भागीदार बनाने के अर्थों में भी बुद्ध के साथ भगवान् शब्द प्रयोग किया गया है। उच्चतर उपलब्धियों में भागीदार होने के अर्थ में भी भगवान् शब्द समानार्थी है।
'भावी वा भगवा चतुन्नं झानानं चतुन्न अप्पमानं चतुन्नं अरूपसमापत्तीनन्ति भगवा' अर्थात् (जो) चार ध्यान, चार अप्रमाण्य ध्यान, चार अरूप ध्यान संपत्तियों के भागीदार हैं (वह) भगवान् हैं।
ये सभी उदाहरण भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से भगवान् शब्द को व्याख्यायित व परिभाषित करते हैं जो कि भगवान् शब्द के आज के प्रचलित अर्थों से बिलकुल अलग अर्थ रखते हैं।
इसी प्रकार 'धम्म' शब्द भी आज के प्रचलित अर्थों में 'धर्म' शब्द का ठीक पर्यायवाची नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आज धर्म का मतलब किसी वर्ग या संप्रदाय विशेष से लिया जाता है, जबकि बुद्ध की देशनाओं में धम्म को विधान, नैसर्गिक नियम, मार्ग, कार्य-कारण सिद्धांत, मूल प्रकृति, तत्त्व, त्रिकालिक सत्य आदि अर्थों में प्रयुक्त किया गया है।
'बैर से बैर शांत नहीं होता। अबैर से बैर शांत होता है'- यह बुद्ध का धम्म है।
'इमासमिम इदं होति, इमासमिम असति इदं न होति' अर्थात् यह होने से यह होगा, यह नहीं होने से यह भी नहीं होगा। यह बुद्ध का धम्म है।
बुद्ध ने प्रायः धम्म के लिए अपनी देशनाओं में कहा है- एस धम्मो सनन्तनो- यह ही सनातन धर्म है। अर्थात् जो सनातन सत्य है, सनातन नियम हैं, बुद्ध ने उन्हें 'धम्म' कहा है।
लेख की कथा-वस्तु:
१. बुद्ध का चक्रवर्ती साम्राज्य - रमेश चन्द्रा
Post a Comment