Yashodhara: यशोधरा

Yashodhara: यशोधरा

Yashodhara

इस लेख के माध्यम से माता यशोधरा के जीवन वृतांत के बारे में  विस्तार से जानकारी देने का प्रयास करेंगे। माता यशोधरा का जन्म एक कोलिय वंश में वैशाख पूर्णिमा (६२३ ई. पू ) के दिन तथा परिनिब्बान ५४१ ई. पू.  हुआ था, ऐसा माना जाता है की राजकुमार गोतम के जन्म दिन वैशाख पूर्णिमा को ही हुआ था। माता यशोधरा की माँ का नाम अमिता देवी तथा पिता का नाम सुप्पबुद्ध था। इनका जन्म और विवाह वैशाख पूर्णिमा (६०७ ई. पू.)  को ही  हुआ था।    

यशोधरा माता के अन्य नाम: 

  1. यशोधरा 
  2. गोपा 
  3. बिम्बा 
  4. भद्दाकच्चाना

राजकुमार गोतम एवं यशोधरा का विवाह:

यशोधरा के पिता राजा सुप्पबुद्ध ने  आसपास के राजकुमारों को स्वयंवर में आने के लिए आमंत्रित किया  था, साथ में युवराज सिद्धार्थ को भी आमंत्रित किया गया था। युवराज सिद्धार्थ ने सभी विद्याओं में कला कौशल का प्रमाण दिया, खासकर जिसमें सिद्धार्थ ने तीरंदाजी में विशेष कौशल दिखाते हुए  विजय प्राप्त की। राजकुमार गोतम व  यशोधरा का  विवाह  सोलहवें वर्ष में  तय हुआ, तत्कालीन पूर्व बुद्ध के रीति-रिवाज के अनुसार विवाह हुआ।  अत: विजेता गोतम की यशोधरा से शादी हो जाती है।  

राजकुमार गोतम और यशोधरा की विवाह में कई राज्य के राजाओं को भी आमंत्रित किया गया था, जिसमे वैशाली के राजा, मगध राज्य के राजा बिम्बिसार, कोसल राज्य के राजा प्रसेनजित, लिच्छवि के राजा, आदि को आमंत्रित किया था।  विवाह हो चुकने के काफी समय बाद यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम राहुल रखा गया।

राजकुमार गोतम ने  29 साल की उम्र में महाभिनिष्क्रमण किया।  राजमहल  (कपिलवस्तु) छोड़ने का मूल कारण कोहली व साक्यों के बीच रोहिणी नदी के जल बंटवारे को लेकर  बिना युद्ध किये हल करना था। 

राजकुमार, के गृह त्याग के बाद उनके पिता राजा शुद्धोधन ने उनकी देख-रेख करने के उद्देश्य से तीन सजातीय और दो मातुल (तीन साक्य व दो कोलिय)  राजकुमारों को उनके पीछे भेजा, जो गोतम की देख भाल के अलावा उनके सभी सूचना गुप्त रूप से महाराज सुद्धोदन व राजकुमारी यशोधरा को देते रहे। जिस जानकारी के अनुसार यशोधरा ने भी राजमहल में रहते हुए संन्यासी की तरह जीवन  जीना शुरू कर दिया, सभी गहने, आराम, समृद्ध शयनकक्ष का त्याग कर दिया।  यशोधरा तब आसपास के सभी जिलों  में सबसे खूबसूरत  और सीलवान  होने के लिए प्रसिद्ध थी।  

कपिलवस्तु आगमन: 

महाराज सुद्धोदन ने सुना कि महाभिनिष्क्रमण राजकुमार सिद्धार्थ सम्यक संबुद्ध बन गए है। उसने धम्मचक्क  पब्बतन  किया। काश्यप बंधु  अपने सभी संन्यासी शिष्यों सहित भगवान के शरणागत हो गये हैं।  मगध साम्राज्य के महाराज बिंबिसार ने श्रद्धापूर्वक उन्हें विहार के लिए अपना मनोरम वेणुवन उद्यान अर्पित कर दिया है। अल्पकाल में ही उपलब्ध हुई इतनी सफलताओं की सूचना ने पिता के मन में उल्लास भर दिया था। वे पुत्र से मिलने के लिए लालायित हो उठे थे। पुत्र को आमंत्रित करने के लिए एक-एक करके नौ अमात्य भेजे, परंतु सभी असफल रहे। अंततः सिद्धार्थ के बचपन के साथी अमात्यपुत्र कालुदायी को भेजा, जो सफल हुआ।

राजकुमार गोतम  बुद्धत्व प्राप्ति के सात (७) साल बाद फाल्गुन पूर्णिमा के बाद सिद्धार्थ कपिलवस्तु आये थे।  जिस प्रसन्नचित्त से यशोधरा ने बुद्ध  का परिचय पुत्र राहुल को दिया, उससे हम देखते हैं कि पति के गृहत्याग का उसके मन में न रोष है, न खिन्नता है। बल्कि श्रद्धा और गर्व है कि जिस लोकहित के लिए गृह त्यागा, उसमें सफल हो गये और लोक-कल्याण में लग गये। तब यशोधरा ने अपने पुत्र राहुल को पिता के गुणों का वर्णन करते हुए  बताया जिसका "नरसिंहगाथा" में संपूर्ण वर्णन किया गया है। नरसिंह गाथा पर आधारित बुद्ध के  गुण स्वरूप अजंता-एलोरा की गुफाओं में बुद्ध की मूर्तियां बनायी गयी, जो आज भी इस बात की साक्षी है। 

भगवान अपने विशाल भिक्षुसंघ के साथ कपिलवत्थु (कपिलवस्तु)  पहुँचे। दूसरे दिन प्रातः सभी नगरवासियों को संघदान के पुण्य से लाभान्वित करने के लिए भगवान भिक्षुसंघ-सहित घर-घर पिंडपाथ / भिक्षाटन करते  हुए निकले। पिता सुद्धोदन यह सुन कर व्याकुल हो गए, और स्वयं जाकर पुत्र को संघ सहित राजमहल में ले आये।सबको सम्मानपूर्वक भोजन करवाया। रनिवास के सभी सदस्य भगवान को नमस्कार करने आये । केवल यशोधरा नहीं आयी। उसने सेविका के साथ संदेश  भेजा कि यदि मुझ में गुण होंगे तो अरिय  पुत्त  तथागत गोतम बुध स्वयं मेरे निवास पर आयेंगे, तभी मैं उनकी वंदना करूंगी।

महाराज सुद्धोदन द्वारा देवी यशोधरा के गुणों का संक्षेप में वर्णन:

महाराज शुद्धोधन ने तथागत बुध से अपने शब्दों में यशोधरा के गुणों एवं उनके त्याग का वर्णन कुछ इस प्रकार कहते हैं कि जिस प्रकार  आपने घर-गृहस्थी त्याग दी और लौटने की कोई संभावना नहीं रही, तब राजवंश के अनेक राजकुमारों ने यशोधरा  के साथ विवाह करना चाहा। परंतु मेरी बेटी ने उनकी ओर नजर उठा कर भी नहीं देखा।  इस प्रकार अपने दायित्व व  चरित्रवान होने  परिचय दिया। 

मेरी बेटी ने जब सुना कि आपने श्रमण वेश धारण करते हुये मुंडन कर लिया, तब से इसने भी अपने सिर का मुंडन करवा लिया। जब से सुना कि आपने सभी गेरुए / भगवा वस्त्र धारण कर लिए हैं, तब से इसने भी  मखमली  वस्त्र व आभूषण त्याग कर, कासाय  वस्त्र धारण कर लिए।

जब से सुना कि आप एक वक्त ही भोजन ग्रहण करते हैं, तब से यह भी एकाहारी हो गयी। जब से सुना कि आपने ऊंचे आरामदेह आसन  पर लेटना त्याग दिया है, तब से यह भी नीचे आसन पर सोने लगी। जब से सुना कि आपने माला, गंध, विलेपन धारण करना त्याग दिया है, तब से इसने भी उन्हें छूआ तक नहीं ।

जब से सुना कि आपने नाच, गीत, वादन आदि मनोरंजन के साधन त्याग दिये हैं, तब से इसने भी इनसे मुख मोड़ लिया।   इस प्रकार महाराज सुद्धोदन ने यशोधरा के संपूर्ण त्याग, दायित्वों, व चरित्र का वर्णन किया। 

यशोधरा अथा गुणों का तो भंडार थी। अतः भगवान ही उनके पास अपने द्वारा दिये वचन को पूरा करने के उद्देश्य से  उनके निवास पर गये।

ममतामयी माता यशोधरा ने उसके पिता का परिचय देकर और पहचान बता कर पुत्र राहुल को कहा- “जा, अपने पिता से मिल और उनसे अपनी विरासत मांग। उनके पास स्वर्णरत्न से भरे चार अरिय सत्य के घड़े भरे पड़े हैं। " राहुल को प्रव्रज्या के लिए प्रेरित किया।

आज २६०० साल बाद बुद्ध के धम्म में कई प्रकार से  भगवान के धम्म को विकृत करने के उद्देश्य से झूठी  बातें व  अनेक मनगढंत बातें जोड़-जोड़ कर फैला दीं जिनका उद्देश्य राजकुमार सिद्धार्थ को नितांत निष्ठुर और निर्दयी बताना था। 

तिपिटक साहित्य में सिद्धार्थ के गृह त्यागने पर यशोधरा के विलाप का वर्णन कहीं नहीं है। उसे अपने प्रिय पति के प्रति विपुल श्रद्धा थी, भक्ति थी एवं दृढ़ विश्वास था.

यशोधरा का भिक्खुनी बनना: 

भिक्खू आनंद के आग्रह करने पर भगवान बुद्ध ने महिला भिक्खुनी  संघ बनाने की अनुमति दे दी और तथागत बुध ने माता महाप्रजापति गोतमी को प्रवज्या उपसंपदा ग्रहण करवाई।

इसके पश्चात तथागत गोतम के शिष्य नंदक ने शेष 500 साक्य महिलाओं को धम्म और विनय की शिक्षा दी। इन पांच सौ महिलाओं में गोतम बुध की पत्नी यशोधरा भी थीं, भिक्खूनी बनने के बाद माता यशोधरा का नाम भद्दा कच्चाना ( भद्रा कात्ययाना ) हुआ।  

माता यशोधरा के भिक्खूनी बनने के बाद उनका नाम भद्दाकच्चाना रखा गया। बुद्ध ने शीर्ष स्थान दिया था। महाप्रजापति को दर्शक प्राप्त हुए। सारीपुत्त, महामोग्गलना और बकुल भंते चार महान दर्शक थे जिसमें थेरी भद्दाकच्चाना सबसे आगे थे। थोड़े ही समय में बुद्ध के दो वर्ष पहले यानी 78 वर्ष की उम्र में ही अरहत बन गईं। महानतम थेरी भद्दाकच्चाना को इस महान समर्पण में मेरा शत शत नमन। 

इन्हें भी देखें 

  1. Paritran Path /  परित्राण पाठ सुत्त
  2. The Buddha's Eight Great Victories / Jayamangala Gatha
  3. पाली (पालि) भासा का इतिहास / History of a Pali Language

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