Varshavas: वर्षावास

 Varshavas: वर्षावास

Varshavas
इस लेख के माध्यम से आज आपको वर्षावास के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में आपको वर्षावास से जुड़े  प्रश्नों का उत्तर भी मिल जायेगा, जैसे वर्षावास क्या होता है ? वर्षावास किस धर्म की परंपरा है ? वर्षावास में क्या होता है ? इत्यादि।  जैसा की हम सभी जानते हैं कि वर्षा के दिनों में अत्याधिक जीवजंतु दिखाई देने लगते हैं। जिस वजह से लोगो द्वारा उन जीवजंतुओं के प्राण जाने का खतरा रहता है, और उनके वजह से लोगो को भी जीवन का खतरा बना रहता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वर्षा के दिन जीवजंतुओं के घरों या निवास या बिलों में पानी भर जाता है जिससे परेशान होकर वो बाहर निकल आते हैं। और मनुष्यों द्वारा पैरों ठाले कुचल जाने का खतरा रहता है। इसलिए, तथागत बुद्ध ने उन जीवों पर करुणा स्वरूप, भिक्खुओं के लिए तीन माह वर्षावास का नियम बनाया। 

वर्षावास की शुरुआत: 

जब तथागत बुद्ध ने पहला धम्म चक्क पब्बतन सुत्त का उपदेश दिया, तब भगवान बुद्ध वर्षावास करते थे लेकिन कोई नियम नहीं बनाया था। जो भिक्खु चाहता वर्षावास करता, नहीं चाहता नहीं करता था। बाद में तथागत ने वर्षावास का नियम बनाया। तब फिर, भगवान बुद्ध के समय से वर्षावास की शुरुआत हुई। 

वर्षावास का समय: 

आषाढ़ पूर्णिमा से तीन माह तक। वर्षावास दो प्रकार से कर सकते हैं। पहला आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से शुरू करके तीन माह के लिए। दूसरा अगर किसी कारण आषाढ़ पूर्णिमा से वर्षावास शुरू नहीं कर पाए हो तो अगली पूर्णिमा से भी शुरू कर सकते हैं। 

वर्षावास कैसे शुरू किया जाता हैं ?

भिक्खुओं का एक उपोसथ क्रम  होता है, पातिमोख, पातिमोख का पाठ करते हैं। यह एक माह में दो बार होता है।  आषाढ़ पूर्णिमा के दिन जब भिक्खु पातिमोख का पाठ कर लेता है, तब अगले दिन सुबह को भिक्खु संघ वर्षावास ग्रहण करता हैं।  जो भिक्खु वर्षावास ग्रहण नहीं करता तो उसका आपत्ति दुख कटस्स एक सील होता है, वह खण्डित हो जाता है। 

गृहस्थों के लिए वर्षावास का महत्व:

उपासक या उपासिका, भिक्खुओं या भिक्खुणि संघ को वर्षावास करने के लिए निमंत्रण कर सकते हैं। और यदि निमंत्रण न भी करके तब भी भिक्खु-भिक्खुणि संघ वर्षावास करते हैं। हर भिक्खु व भिक्खुनी को वर्षावास करना चाहिए, फिर चाहे वह धूतङ्गधारी ही क्यों न हो। वर्षावास के समय तीन माह एक ही जगह या विहार में वास करते हैं। भगवान बुद्ध ने बताया है कि यदि किसी कारण के वजह से जाना भी पड़े तो सात दिन के भीतर उसी विहार या स्थान पर लौट जाना चाहिए अन्यथा उसका वर्षावास खंडित हो जायेगा।   

अगर कोई उपासक या उपासिका किसी भिक्खु या भिक्खुनी संघ को किसी विहार में वर्षावास के लिए ठहरता है, तो उसे बहुत पुण्य कमाने का मौका मिल जाता है। 

वर्षावास के लिए भिक्खु संघ को कैसे निमंत्रित करना चाहिए ?

वस्सिक साठिक के साथ भिक्खु संघ को वर्षावास के लिए निमंत्रित करना चाहिए। वस्सिक साठिक, का मतलब होता है, वर्षावास के समय नहाने का एक वस्त्र। उसके साथ भिक्खु संघ को या भिक्खु को वर्षावास के लिए निमंत्रित करना चाहिए। और जब भिक्खु उस वस्सिक साठिक वस्त्र को ग्रहण कर लेते हैं, तो निमंत्रण स्वीकार मन लिया जाता है। 

वर्षावास के समय उपासक-उपासिका क्या कर सकते हैं ?

भिक्खु लोग वर्षावास के समय बहुत मेहनत करते हैं। अपने चित्त को परिशुद्ध करने के लिए खूब ध्यान करते हैं। कुशल कर्मों को बढ़ाने के लिए, ध्यान-समाधि से आगे जाने के लिए, निब्बान पाने के लिए खूब तप करते हैं। ऐसे समय में उपासक-उपासिकाओं को विहारों में भिक्ख-भिक्खुनी संघ को जरूरत का सामान जैसे भोजन दान, चीवर दान, बीमार के लिए दवाई आदि सामान दान करना चाहिए।  इससे उन्हें बहुत पुण्य मिलता है। 

वर्षावास के समय उपासक-उपासिकाओं को आठ सीलों का या उपोसथ सील का पालन करना चाहिए। अगर संभव हो तो पूरे वर्षावास के समय तीन माह तक उपोसथ सील ग्रहण करना चाहिए, या माह में चार बार चतुर्थी, अष्ठमी, अमावस, और पूर्णिमा के दिन उपोसथ सील ग्रहण करना चाहिए।  वर्षावास के समय उपोसथ सिलों का पालन करने से बहुत पुण्य मिलता है। 

वर्षावास के समय भिक्खु-भिक्खुनी संघ का दर्शन करना, धम्म सुनना, धम्म का पाठ करना चाहिए। ऐसा  करने से बहुत  पुण्य  मिलता है।  और वर्षावास के अंत में भिक्खु-भिक्खुनी संघ को चीवर दान करना चाहिए जिससे बहुत अधिक पुण्य मिलता है। 

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